बे-फिक्री
नीले आकाश के नीचे सो जाते हैं लेकर अधनंगा बदन,
अब ना ओढ़ने का फिक्र रहा और ना जोड़ने का फिक्र रहा,
अब तो अंदर ही दम तोड़ने लगी हैं
हज़ारों बच्चों की भूख से निकलती सिसकियां,
अब ना कुछ नया मिलने का...
अब ना ओढ़ने का फिक्र रहा और ना जोड़ने का फिक्र रहा,
अब तो अंदर ही दम तोड़ने लगी हैं
हज़ारों बच्चों की भूख से निकलती सिसकियां,
अब ना कुछ नया मिलने का...