बे-फिक्री
नीले आकाश के नीचे सो जाते हैं लेकर अधनंगा बदन,
अब ना ओढ़ने का फिक्र रहा और ना जोड़ने का फिक्र रहा,
अब तो अंदर ही दम तोड़ने लगी हैं
हज़ारों बच्चों की भूख से निकलती सिसकियां,
अब ना कुछ नया मिलने का फिक्र रहा ना कुछ छोड़ने का फिक्र रहा,
किताबों में सिमट कर रह गई है गरीबों के हक और इंसाफ की बातें.
अब ना खुद के टूटने का फिक्र रहा ना किसी को तोड़ने का फिक्र रहा,
हमेशा खुद में मशरूफ देखी है इधर से गुजरती हर जमात,
"जोसन" अब ना किसी की तरफ देखने की हसरत रही,
और ना ही किसी के मुंह मोड़ने का फिक्र रहा
© Meharban Singh Josan
अब ना ओढ़ने का फिक्र रहा और ना जोड़ने का फिक्र रहा,
अब तो अंदर ही दम तोड़ने लगी हैं
हज़ारों बच्चों की भूख से निकलती सिसकियां,
अब ना कुछ नया मिलने का फिक्र रहा ना कुछ छोड़ने का फिक्र रहा,
किताबों में सिमट कर रह गई है गरीबों के हक और इंसाफ की बातें.
अब ना खुद के टूटने का फिक्र रहा ना किसी को तोड़ने का फिक्र रहा,
हमेशा खुद में मशरूफ देखी है इधर से गुजरती हर जमात,
"जोसन" अब ना किसी की तरफ देखने की हसरत रही,
और ना ही किसी के मुंह मोड़ने का फिक्र रहा
© Meharban Singh Josan