...

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दूसरा पडाव जीवन का
जीवन का पहला पडाव पार करके दूसरे पड़ाव में आ गए बेफिकरे से दिल पर मानों व्यथाओं के बादल छा गए
बस्ते के भार से छुटकारा मिला
पर इन कंधों पर अंजानी सी जिम्मेदारियों का बोझ महसूस होता है
समझ न आया आखिर व्यक्ति अपना बचपना क्यों खोता है

कल तक जो डूबे रहते थे किताबो के पन्नों में
आज वो सरकारी काग़जो के पीछे भागे है
अब तक जो जी लिया वो एक सुनहरा ख्वाब था
असल दुनिया में तो हम अब जागे हैं

सौ रोहे हैं सामने चुननी सिर्फ एक है
हर राह में छिपे उतार-चढ़ाव अनेक हैं।
ये इम्तिहान है तेरा , जो तुझे व्यथाओं ने घेरा
हारा तो अँधियारा, गर जीता तो सवेरा
अब डरने की क्या बात है
मंजिल से होने वाली मुलाकात है
अब तक जगमगाते आएं हैं
आगे भी जगमगाएंगे
अपनी मेहनत के पसीने से
सफलता का हीरा तराश लाएँगे।
© VSAK47