कलम ए मजबूरी।
#मजबूरी
झूठ नहीं मजबूरी है,
तुम जानों क्या क्या ज़रूरी है;
नंगे बदन की भी अपनी धुरी है,
शर्म लिहाज तो पूरी है
पर पेट के लियर ये काम भी जरूरी हैं
समाज मे क्या रखा है जनाब
हमे ज़िंदगी कौनसी जिनी पूरी हैं।
झूठ नहीं मजबूरी है,
तुम जानों क्या क्या ज़रूरी है;
नंगे बदन की भी अपनी धुरी है,
शर्म लिहाज तो पूरी है
पर पेट के लियर ये काम भी जरूरी हैं
समाज मे क्या रखा है जनाब
हमे ज़िंदगी कौनसी जिनी पूरी हैं।