![...](https://api.writco.in/assets/images/post/default/story-poem/normal/2.webp)
34 views
बोन्साई सा मन
और कितना काटोगे
अपनी शाख़ाओं को,
नित नई भावनाएँ
प्रस्फूटित होने लगे तो!
चलो ज़ड़ों को तो छोटा
कर ही दिया, ख़ुद को भी
छोटे से गमले में कैद कर लिया,
अगर कभी सूखने लगे
वज़ूद तुम्हारा, न सींचे माली जल,
झरने लगे नाममात्र के पात
तो फिर क्यों बनना चाहा तुमने
बोन्साई सा सजावटी जीवन ?
अपनी शाख़ाओं को,
नित नई भावनाएँ
प्रस्फूटित होने लगे तो!
चलो ज़ड़ों को तो छोटा
कर ही दिया, ख़ुद को भी
छोटे से गमले में कैद कर लिया,
अगर कभी सूखने लगे
वज़ूद तुम्हारा, न सींचे माली जल,
झरने लगे नाममात्र के पात
तो फिर क्यों बनना चाहा तुमने
बोन्साई सा सजावटी जीवन ?
Related Stories
89 Likes
39
Comments
89 Likes
39
Comments