...

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उड़ने को पंख ही नही हैं ।
पक्षी बन आकाश में उड़ना चाहता हूं,
सात समुंदर पार जाना चाहता हूं,
बादलों को करीब से देखना चाहता हूं ,
पर उड़ने को तो पंख ही नही हैं।
सपनो में पक्षी की तरह गगन चूमता हूं,
धरती और आकाश को एक देखता हूं,
बारिश के संगीत को करीब से सुनता हूं ,
फिर कोई कहता तेरे पास तो पंख ही नहीं हैं ।
क्यूं मैं उस असत्य के वृक्ष का फल खा रहा हूं,
अपने पतन का खुद ही भागी बन रहा हूं,
अंधकार का वृक्ष अक्सर कहता है मुझसे ,
क्यूं मैं असत्य को असत्य मान रहा हूं।
सपनो में पंख खुद ही बुनता हूं ,
सपनो में ही पंखों पर आकाश को रखता हूं,
अपनी उड़ान से इंद्र को लज्जित कर देता हूं ,
तबसे मेरे कान में आकर कोई कह जाता,
उड़ने को तो पंख ही नही है ।


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