...

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बुरी ख़बर...
सन्नाटे से भरा अब सिर्फ शोर है
रंगों वाली दीवारें भी अब बोर हैं
कुछ गिने - गिनाएं चेहरे है और
एक यंत्र ऐसा है जो केहता है,
आज फिर एक बुरी ख़बर है...

जहां रुकने की ख्वाहिश थी कभी
अब घुटन सी होने लगती है
बेमिसाल आशियाने की चमक, अब
जेल की काली दीवारों सी लगती है
रोज़ आंखें तब बंध होती है, जब
उगते सूरज की तपिश शुरू होती है
अब वक्त कुछ ऐसा है यारों
दिन की शुरुवात बुरी ख़बर से ही होती है...

आइना तो जैसे मानो खफा खफा सा है
जब भी देखूं खुद को, चीख - चीख कर केहता है
"कौन है तू अजनबी, जरा जाना पहचाना सा लगता है"
अलमारी भी अब सिर्फ कुछ ढूंढने को खुलती हैं
वो इस्त्री वाली पैंट-शर्ट अब देखते ही खुश हो जाते हैं
पर शॉर्ट्स और T-शर्ट्स जैसे उनका मजाक उड़ाते हैं
अब चाहे TV हो या मोबाइल की दुनिया, बुरी खबर के अलावा कुछ नही दिखाते है...


© Aezz खान...