...

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मेरी खुशी का ठिकाना
मैं खुद में ही रहती हूँ , मैं खुद में ही हंसती हूँ न किसी की जरूरत है न किसी से उम्मीद रखती हूँ,

उम्मीद देने वाले बदल गए साथ निभाने वाले छोड़ कर चले गए,

मुझे मेरे अपनों ने ना समझा बाकी तो फिर भी गैर थे ।

अपने आँसु किसी को नहीं दिखाती हूँ
सोचती हूँ यादों की गलियों में पता ना चल जाए कि मैं भी रोती हूँ

हर बार चुपके से टूट जाया करती हूँ
किसी को आवाज़ तक नहीं आने देती हूँ

मिठा बोलने वाले अक्सर दिल जीत जाएगा करते हैं

पर मैं भी उनकी सच्चाई उनके मुंह पर बोल दिया करती हूँ ,
इसलिए मैं तमिज की गलियों में बतमीज कहलाया करती हूँ

मैं अकेली खुश रहती क्योकि मैं लोगों से बात उनकी औकात अनुसार करती हूँ ।

पलक / palak sharma ❤❤❤❤