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-वो दरवाजे पर खड़ी थी-
               -वो दरवाजे पर खड़ी थी-

वो दरवाजे पर खड़ी थी मैं खिड़की में खड़ा था,
पर आज उसकी नजर में अंतर ही बहुत बड़ा था,

मैंने खोल के फिर वह देखा उसने भेजा था जो लिफाफा,
उसमें दर्ज एक एक अक्षर मेरे सीने पे लड़ा था,

बोली सपने थे जो सजाए सब खत्म हो गए है,
मजबूरियों के बोज में सब भस्म हो गए है,

कल बहन बड़ी मेरे लिए एक रिश्ता लेकर आई,
वह बनने जा रहा है मेरे बाप का जमाई,

सुना है हमारे घर पर उसके  एहसान बहुत बड़े हैं,
उसी से लेके कर्ज हमारी छत के छतीर पड़े हैं,

हर वक्त  बेवक्त पर वो काम बहुत आया,
उसी ने कर्ज देकर...