...

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चल अलविदा

शाम रात सुबह और न जाने क्या क्या ...
वो जा रहा है तो जाए चल अलविदा ...

आखिर बिछड़ना ही है हमें एक रोज ...
उम्मीद है वो फिर ना मिले मेरे ख़ुदा ...

नये लोगों को समझने में वक़्त तो लगता ही है ...
ये भी सही है कौन रुकता है किसी के लिए यहां ...

वैसे तजुर्बे बहुत दिए मुझे जिंदगी ने ...
रेत था वो औऱ मुट्ठी में ठहरता है रेत कहाँ ...

वो आया तो था उम्र भर साथ देने को ...
खैर कुछ वक़्त साथ तो चला चल अलविदा ...
© Vikas Pal