तन्हाई के वो छह महीने
जब छह महीने अकेलेपन की कैद में रहा,
हर दिन खुद से लड़ता, हर रात टूटता रहा।
डिप्रेशन और एंग्जायटी के अंधेरों में,
एक बंद कमरे में खुद को गुम करता रहा।
न मोबाइल, न इंटरनेट, न कोई बाहरी दुनिया,
सिर्फ सन्नाटे और खामोशी का साथ था।
जो जख्म दिल में थे, उन्हें खुद ही सहलाया,
हर आंसू को अपनी हथेली पर संभालता रहा।
तब...
हर दिन खुद से लड़ता, हर रात टूटता रहा।
डिप्रेशन और एंग्जायटी के अंधेरों में,
एक बंद कमरे में खुद को गुम करता रहा।
न मोबाइल, न इंटरनेट, न कोई बाहरी दुनिया,
सिर्फ सन्नाटे और खामोशी का साथ था।
जो जख्म दिल में थे, उन्हें खुद ही सहलाया,
हर आंसू को अपनी हथेली पर संभालता रहा।
तब...