Zindagi
ना जाने किस राह पर मै चली जा रही थी,
ना जाने अंदर ही अंदर किसकी कमी खली जा रही थी।
पीछे मुड़कर देखा तो कयामत सा अंधेरा था,
कदम थम से गए लगा उन पर जैसे जंजीरों का पहरा था।
धडकनों की सीमा न रही और मन भी घबराया था,
लगा जैसे एक...
ना जाने अंदर ही अंदर किसकी कमी खली जा रही थी।
पीछे मुड़कर देखा तो कयामत सा अंधेरा था,
कदम थम से गए लगा उन पर जैसे जंजीरों का पहरा था।
धडकनों की सीमा न रही और मन भी घबराया था,
लगा जैसे एक...