खोई शहर की शांति
#खोईशहरकीशांति
निकला था घर से शहर को,कुछ कमाने
थोड़ी सी ख़ुशी और इस सर को छुपाने
भूख भी कमबख्त ऐसी कि घर पर रहने नहीं देती
बच्चे तड़पे भूख से अब ये आंखें सहने नहीं देतीं
पहुंचा शहर वहा बेहद शांति थी,
इतनी की वहां कोई अपना ना था
बहुत आते हैं लोग वहा अपने सपनों को लेकर, मगर मेरा कोई ऐसा सपना ना था
मैं अपने भूखे बच्चों का पेट...
निकला था घर से शहर को,कुछ कमाने
थोड़ी सी ख़ुशी और इस सर को छुपाने
भूख भी कमबख्त ऐसी कि घर पर रहने नहीं देती
बच्चे तड़पे भूख से अब ये आंखें सहने नहीं देतीं
पहुंचा शहर वहा बेहद शांति थी,
इतनी की वहां कोई अपना ना था
बहुत आते हैं लोग वहा अपने सपनों को लेकर, मगर मेरा कोई ऐसा सपना ना था
मैं अपने भूखे बच्चों का पेट...