पंख
पंख पास तो हैं मेरे,
पर हौंसलों की कमी हैं,
आसमां हैं मेरे पास भी,
पर ना जाने क्यों उसके दायरें,
छोटे हैं।
मैं उड़ता,
फिर गिर जाता,
फिर चिल्लाने में सास भर आती मेरी,
हार कर पास में रखें,
दो निवाले अनाज के,
चुग आता।
दीवारें सोने की थीं,
बाहर से देखनें में सुंदर भी,
पर ना जाने सोने की दीवारों ने,
पंख छीन लिये...
पर हौंसलों की कमी हैं,
आसमां हैं मेरे पास भी,
पर ना जाने क्यों उसके दायरें,
छोटे हैं।
मैं उड़ता,
फिर गिर जाता,
फिर चिल्लाने में सास भर आती मेरी,
हार कर पास में रखें,
दो निवाले अनाज के,
चुग आता।
दीवारें सोने की थीं,
बाहर से देखनें में सुंदर भी,
पर ना जाने सोने की दीवारों ने,
पंख छीन लिये...