...

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!..खामोश!,'आज़ादी से बोल..!
जल रहे हैं मेरे अपने, जालिम के बारूद पर
मुल्क बहुत है मेरे लेकिन,सब यहां बुजदिल निकले

साथ नहीं है देखा इनको, पास ना आए ये मुनकिर
एक ही मजहब था हम सबका, हर कोई कौम बना निकले

सारे मुस्लिम भाई अपने, है हदीस पुरानी ये
अब तो मुल्क है अव्वल आला, अपने गैर बना निकले

मरते बच्चे जलते घर, कैसी है ये अब्र ए रहमत
जालिम की है ये अब्र ए रहमत, हम तो मुल्क निकाले निकले

जुल्म से लड़ता एक शजर, कलिया सारी बिखर गई
नोच लिया काले कुत्तों ने , जब दीप बुझाए जां निकले

© —-Aun_Ansari