कहीं ऐसा न हो...
कहीं ऐसा न हो !
कि वो हमारा चेहरा भुलाए बैठे हों
और हम उनसे आस लगाए बैठे हों
की वो किसी और का सपना देखें
और हम उनका सपना सजाए बैठे हों
कहीं ऐसा न हो.....
कि हम उनकी याद में शम्मा जलाये बैठे हों
और वो किसी और का घर बसाए बैठे हों
कि उनके इश्क़में हम पलके बिछाये बैठे हों
और किसी ग़ैर से ही नैना लड़ाए बैठे हो
कहीं ऐसा न हो.....
© All Rights Reserved
© Ish kumar
कि वो हमारा चेहरा भुलाए बैठे हों
और हम उनसे आस लगाए बैठे हों
की वो किसी और का सपना देखें
और हम उनका सपना सजाए बैठे हों
कहीं ऐसा न हो.....
कि हम उनकी याद में शम्मा जलाये बैठे हों
और वो किसी और का घर बसाए बैठे हों
कि उनके इश्क़में हम पलके बिछाये बैठे हों
और किसी ग़ैर से ही नैना लड़ाए बैठे हो
कहीं ऐसा न हो.....
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