...

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safar
यूँ ही किसी शाम को ढल जाना है।
जिंदगी क्या तेरा कोई पता ठिकाना है।

धुंधली हो चलो है अब उनकी यादें भी।
चंद सांसों का बाकी मेरा आबोदाना है।

ये जुस्तजू के उनके साथ दो पल गुजरे।
जानता हूँ कुछ पल जीने का बहाना है।

उनके आने की उम्मीदों में शाम ढली।
ये भी है के उनके सामने भी जमाना है।

फिर ना अब ये बारिशों के मौसम होंगे।
ताउम्र सहते रहे उस दर्द को छुपाना है।

कोई रंजो गम नही बस इक मायूसी है।
उनके साथ जीने को मौत तक जाना है।
©️®️ranjitsingh, 26/06/2021

© ranjitsingh