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निश्वार्थ
निश्वार्थ प्रेम है अनंत सा,
मृग हृदय मे जो कस्तूरी सा,
व्यभिचर करता है मृदंग सा,
खुशियों मे जो हो निश्चय सा,
है प्राण प्रतिष्ठा की भाती,
निश्वार्थ प्रेम है अनंत सा,
संगत है संत महात्मा का,
लांछन जो लगा कलंक सा,
हूँ रिड़ी सदा उस संग का,
निश्वार्थ प्रेम है अनंत सा,
था जगत गुरु वो बसंत सा,
कस्टो को हरता विनम्र सा,
है चरण स्पर्श तुझे वंदन,
निश्वार्थ प्रेम है अनंत सा ।
© Ambuj Pathak
मृग हृदय मे जो कस्तूरी सा,
व्यभिचर करता है मृदंग सा,
खुशियों मे जो हो निश्चय सा,
है प्राण प्रतिष्ठा की भाती,
निश्वार्थ प्रेम है अनंत सा,
संगत है संत महात्मा का,
लांछन जो लगा कलंक सा,
हूँ रिड़ी सदा उस संग का,
निश्वार्थ प्रेम है अनंत सा,
था जगत गुरु वो बसंत सा,
कस्टो को हरता विनम्र सा,
है चरण स्पर्श तुझे वंदन,
निश्वार्थ प्रेम है अनंत सा ।
© Ambuj Pathak
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