...

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नूर-ए -आफ़ताब
आज कई दिनों बाद नूर-ए-आफताब का पैगाम लाया
हूँ, सुर्ख होंठो पर मंजिल का नया पयाम लाया हूँ!

देर बहुत लगा दी तुमने इजहार करने में सनम,बर्बाद
कर दी दुनिया,तुम्हारे लिए तोहफे में इल्जाम लाया हूँ!

समझ ना पाया तेरी पाकीज़ा मोहब्बत को सनम सारी
जहां को छोड़ तुझ में ही सिमटने सरेआम आया हूँ !

आँखों में नफरतों का पहरा ओढ़ बैठ गया जब खबर,
हुई सच्चाई की तो जिंदगी तमाम करने बैठा हूँ !

ना जाने कितने ही किए दर्द भरे सितम बिना जाने,
तुझ पर आंख खुली तो हाथों में अंजाम लिए ठहरा हूँ !

तेरे जज्बातों से खेल खुदा से भी रहमत की भीख माँग
रहा हूँ साँसे चलने के लिए खुद का आयाम ढूंढ रहा हूँ

तुझको ठुकरा कर देख जिल्लत की जिंदगी जी रहा हूँ,
तेरे दर्दो का इंतजाम कर कहीं शायद अब ठीक हूँ !
© Paswan@girl