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"भावनाओं की लहरें: आँसू और उनकी सच्चाई"
:आँसू और भावनाएँ:

दुख, दर्द, तकलीफ, चिंता, ग़म—कैसा भी हो, मिटाने को तो मिटाया जा सकता है।

मन की गहराई में जब तकलीफें उठती हैं, जैसे लहरें समुद्र में उठती हैं, हर कोना, हर दरार, हर भावना को छूती हैं, इनसे बचने का कोई तरीका नहीं मिलता।

जब दुःख की चादर हमारे जीवन को ढक लेती है, हर खुशी की किरण मंद हो जाती है, दर्द का अहसास दिल में घर कर जाता है, सुख की कोई भी चमक फीकी लगने लगती है।

हम एक प्रयास के साथ इनसे उबरने की कोशिश करते हैं, जैसे शीतल हवा की तरह ये भावनाएँ तिरोहित हों, हम दवाइयों, मनोचिकित्सकों, और उपदेशों से जूझते हैं, पर दुःख का नाम मिटा नहीं पाते।

मगर मसाला तो आँखों के पानी का है—खुशी हो या ग़म, सब में एक जैसा नज़र आता है।

जब आँसू बहते हैं, उनके साथ बह जाती है, हर दुख, हर चिंता, हर दर्द की लहरें, उनमें एक गहराई छिपी होती है, एक वास्तविकता, जो खुशी और ग़म में समान होती है।

आँसू, जो खुशी की रौशनी में भी चमकते हैं, वो ग़म के अंधकार में भी झलकते हैं, इनकी भाषा एक सी है, इनका रंग एक सा है, ये हमें यह सिखाते हैं कि हर भावना एक जैसी होती है।

:दुख और खुशी के आँसू:

जब दुःख और दर्द के आँसू बहते हैं, वे जीवन के हर पहलू को छूते हैं, वे चुपके से हमारे दिल की गहराई तक पहुंचते हैं, और हमें असहायता का अहसास कराते हैं।

वहीं, खुशी के आँसू भी ज्यों ही छलकते हैं, वे हमारे हर्ष और उल्लास को व्यक्त करते हैं, ये आँसू भी उतनी ही गहराई से निकलते हैं, जितनी गहराई दुःख के आँसू की होती है।

:फूलों की तरह खुलती हैं भावनाएँ:

जैसे फूल खिलते हैं...