...

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चाहत
क्यों तुझे मैं चाहूँ,
क्यों तुझे पाने की है आरज़ू।
खता क्या बता मेरी है,
जो सजा ऐसी मुझे मिली है।
के अब इबादत में तुझको चाहने लगे हैं,
फिर भी तेरी झलक ना मिली।
खामोश क्यों हो, ज़माने सा,
क्या पल थे वो ही आख़िरी।
तेरी आँखों में मैं अब डूबना चाहूँ,

फिर खताएँ मुझे क्यों मिलीं,
क्यों तुझे पाने की है आरज़ू।
ग़म तो सारे ज़माने का है,
खुशियाँ तुझे देख कर ही मिलीं।

सुबह की धूप सी सर्द रातों में,
इश्क़ मोहब्बत प्यार की बातों में।

फूलों की जैसी तेरी हँसी है,
कुछ ऐसे मुझे तू अब मिली है।
जैसे कि खूब कोई पहेली है,
लाखों हैं दुनिया में पर वो अकेली है।

तेरी चाहत को मोहलत देने लगा हूँ,
ख़ामोश था पहले, अब कहने लगा हूँ।
जज़्बातों को मैं समझने लगा हूँ,
फ़िक्र तेरी अब करने लगा हूँ।
सच कहते हैं वो लोग,
तेरे फ़ितूर में बदलने लगा हूँ।

ख़ोया रहता हूँ तेरी ख्यालों में,
ढूंढूं खुदको तेरी जवाबों में।

अब मैं शायद समझने लगा,
मोहब्बत फिज़ा में बहने लगा।।

क्यों तुझे मैं चाहूँ,
क्यों तुझे पाने की है आरज़ू।


© Medwickxxiv