तुझसे मोहब्बत
मैं ठहरा जमीन का और तू निकली फलक की ।
इस मासूम दिलको मालूम न हुआ … कबसे तलब हो गई तेरे झलक की ।।
खबर न रहा कि कब होश उड़ गये मेरे, यूँही साथ चलते चलते ।
जख्म सिने का अब रह गया हरा, यूँही आँखों को मलते मलते ।।
साँसें अब रुकी जा रही है मेरी, जरुरत है मुझे, तेरे सिर्फ चाहत की ।
मिलने को मैं देखुँ बार-बार सपने, नहीं है चैन कोई राहत की ।।
तुझ जैसा ढूँढने का सिलसिला मेरे...
इस मासूम दिलको मालूम न हुआ … कबसे तलब हो गई तेरे झलक की ।।
खबर न रहा कि कब होश उड़ गये मेरे, यूँही साथ चलते चलते ।
जख्म सिने का अब रह गया हरा, यूँही आँखों को मलते मलते ।।
साँसें अब रुकी जा रही है मेरी, जरुरत है मुझे, तेरे सिर्फ चाहत की ।
मिलने को मैं देखुँ बार-बार सपने, नहीं है चैन कोई राहत की ।।
तुझ जैसा ढूँढने का सिलसिला मेरे...