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ज्ञान की फुसफुसाहट
#ज्ञानकीफुसफुसाहट

दिन भर भाग दौड़ तृण भरी थकान,
एक बोझ लिए बैठा मन की मचान;
चित्त डूबा चिन्ता और चित हैरान,
मध्यम मन्दार तत्परता से अंतर्ध्यान।

मार्तंण्ड मध्यम ताप छू पाया प्रताप,
चेते चेतन दीप चित्त जाग्रत प्रकाश;
चित चिंता नियंत्रण पात अकस्मात,
चितवन !
कुसुमित चैतन्य ज्ञान फुसफुसाहट।

चारु चंद्र चंचल अर्चि स्पर्श तन मन,
तृण से मन अतल मृदुलज्ञान स्पंदन;
तारों की तोरण चमक चित्त चितवन,
ऋषि सा मन ले दीप्तिमान हो गगन।

भोरदिवाकर आरुषि स्नेहपूर्ण स्पर्श,
तन मन रोम रोम जाग्रत जाग्रति हर्ष;
मानुष मानवीय स्नेह प्रेम दान सहर्ष,
चित्त- चित चेतन ज्ञान ज्योत चेतेश्वर।

मान प्रकृति को अंतर्मन से अराध्य;
वन उपवन पुष्प पात स्नेह सानिध्य,
ह्रदय प्रफुल्लित मन बजें ज्ञान वाद्य,
जीवन होत स्नेह दया करुणा साध्य।

तरनी नीर बना धारा- प्रवाह मलंग,
उत्कल उच्छल तरनीजल ज्ञान तरंग;
जीवन सीख नव -गुण - ज्ञान प्रसंग,
क्षण- क्षण जीवन यात्रा रहेगी प्रसन्न।

जननी जन्मभूमि का पाकर आशीष,
पर्वत की चोटी सा शीष उठाए शीर्ष;
चित्त में पल को कम न हो ज्ञान प्रीत,
सर्वथा स्मरण रहे मानवता प्रेम गीत।

तरण -जीवन- तारिण पवन-पावणी,
हरी घाट हरी- हरे पाप मोक्ष दायिनी;
रोमरोम तृणमन हरे पीड सुखदायनी
अविरल अविनाशी हरी समयसारणी।



© Nik🍁