...

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दास्ताँ
दिलो का काफिया मिलाती
हर्फो की सर्गोशिया सुनाती...

इश्क-ए-हकीकी दास्ताँ सी
मुकद्दस अजा़न सी बुलाती...

तरन्नुम मे हलके से पुकारती
कभी बज्मो मे गुनगुनाती....

मुहब्बत की निकहत बिखेरती
कभी फिजाओ मे महकती...

सुहाने मौसमोके गज़ल सी वो
हलके से मेरे दिल को छु जाती....

हर्फ - शब्द
इश्क-ए-हकीकी - इश्वरीय प्रेम
मुकद्दस - पवित्र
निकह़त - खुशबु
© संदीप देशमुख