...

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ज़िन्दगी से हताश
जिंदगी अनमोल है
क्यू समझा इसे खेल है,
गम तो इक पहलू है इसका
क्यू समझा मौत ही इक रास्ता है,
क्या खुशी के लिए तुझे
खुदखुशी ही रास आयी
ज़िन्दगी से हताश
मौत समझ आयी...

गर परेशा था तू तो
नयी राह की खोज में निकला होता
तू कुछ वक्त के लिए
और सम्भला होता
बातो को अपनी तू
खुद पर भी आज़मा लेता
तो शायद तू सदा के लिए
असमा में ना टिमटिमा रहा होता

लिया होगा...