ज़िंदगी
ऐ ज़िंदगी तू हर बार मुझे बुरा क्यूं बनाती है
दो-चार सबक जो सीख लिए मैंने
तू बार-बार क्यूं सिखाती है
अब अच्छाई का क्या मोल दूं मैं
अपने मन को कैसे बोल दूं मैं
जो चुप कर सह लूं सारा
तो बस फिर अनमोल हूं मैं
ये...
दो-चार सबक जो सीख लिए मैंने
तू बार-बार क्यूं सिखाती है
अब अच्छाई का क्या मोल दूं मैं
अपने मन को कैसे बोल दूं मैं
जो चुप कर सह लूं सारा
तो बस फिर अनमोल हूं मैं
ये...