...

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....न हो सकता
सुना है , आँसू की कीमत होती है क्या..
उस तकिये का कोई खरीददार न हो सकता ।

अब हर मौसम में बारिश करा दें...
ऐसा तो मेरा परवरदिगार न हो सकता ।

ये हवाएं दूर आसमानी लगती है गुरु
ज़मीनी हवा , इंसान का हमलावार न हो सकता।

कितने शख्त से पेश आते तो मेहमान के साथ
ऐ ज़िन्दगी! तुमसा कोई मकानदार न हो सकता ।

ये क़ब्र किसी अमीर की लगती है ‛सुमन’
शायद..!गरीब, ऐसे मिट्टी का हकदार न हो सकता।

कुछ ख्वाब को ज़ी भर के जी लेता हूँ ख्वाबों में
अब हर दिन तो इतवार न हो सकता..।

“..मैं ठीक हूँ..”सुनने से परेशान हो जाती हैं वो
माँ से अच्छा कोई जानकार न हो सकता..।

कुछ लोग मशवरें देते है हज़ार ....
जो लोग एक दिन भी मेरा किरदार न हो सकता।

“जितना हंसते है वो, उतना ही खुश रहते है क्या?”
एक पिता से बड़ा कोई अदाकार न हो सकता।

बिना कुछ दिए, हर रोज दुआ ले जाता है...
ऐ ख़ुदा! तुमसा कोई कर्जदार न हो सकता।


#Dark theme


























© Sumi_