...

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सपना
खिलता हुआ गुलाब हो तुम
जिसे काँटों की कोई फिक्र नही
हर मौसम खिलखिलाती हो तुम
किसी गम का चेहरे पर ज़िक्र नहीं

घर की सबसे नन्ही हो तुम
व्यहवार मगर बड़ों-सा है
"माँ" की भी बन जाती हो माँ
संस्कार मगर जड़ों में हैं

ग़मों से परे...