मैं बहुत बोलता हूं
मैं बहुत बोलता हूँ,
बोलकर मैंने कई रिश्ते खराब किए,
खो दिए मैंने कई अपनों को,
अब मैं अकेला हो गया हूँ।
अक्सर सोचता हूँ,
कि इसमें कसूर किसका है?
फिर मैंने पाया,
गलती मेरे बोलने में नहीं है।
क्योंकि बचपन से ही हमें सिखाया गया,
कि दिल खोलकर बोलो,
सच बोलो, हक के लिए बोलो,
मौन हो गए तो गौण हो जाओगे।
लेकिन जब मैंने बोलना शुरू किया,
तो सभी ने कहा,
"ज्यादा बोलते हो, कम बोलो।
हर जगह मुँह मत खोलो,
सोच-समझकर बोलो,
जहां ज़रूरत है, वहीं...
बोलकर मैंने कई रिश्ते खराब किए,
खो दिए मैंने कई अपनों को,
अब मैं अकेला हो गया हूँ।
अक्सर सोचता हूँ,
कि इसमें कसूर किसका है?
फिर मैंने पाया,
गलती मेरे बोलने में नहीं है।
क्योंकि बचपन से ही हमें सिखाया गया,
कि दिल खोलकर बोलो,
सच बोलो, हक के लिए बोलो,
मौन हो गए तो गौण हो जाओगे।
लेकिन जब मैंने बोलना शुरू किया,
तो सभी ने कहा,
"ज्यादा बोलते हो, कम बोलो।
हर जगह मुँह मत खोलो,
सोच-समझकर बोलो,
जहां ज़रूरत है, वहीं...