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रिक्त पूर्ति
किसलिए नहीं स्वीकार तुम्हे
प्रीत देह संधान
माना आत्मा उर्वरक-भू
पर देह भी है धान

क्यों नहीं अंग स्पर्श पर
सरल तुम्हारा नेह
नित अपरिचित आनंद पर
क्यों तुमको संदेह

क्या नहीं हिलोरे लेता तुममे
भीतर रुका आनंद
क्या ये विकृत नहीं कि
करो तुम मन-द्वारों को बंद

क्यों अनिवार्य, परिणय से पाओ
संसर्गो का मित्र
हृदय- सखा संग साहचर्य
क्यों मैला और अपवित्र
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