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निरुत्तर सवाल
निरुत्तर सवाल

आज फिर निरुत्तर रह गए मेरे सवाल
आज फिर वह चीख कर छुपाना चाहती है, कुछ और
आज फिर वह नजरों को छुपा रही थी
मैं वहीं उसकी ओर देखे जा रहा था
उसकी आंखें जो सजा से बचने के लिए
प्रपंच रच रही थी
वह विवशता को सामने लाने से बचा रही थी नाहक
वह संवेदनाओं को डुबो देखा चाहती थी
गहरे खारे समुद्र में
वह बहक कर...