...

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~जो पहचान लेता खुद को तू~
हर शक्स का एक ख्वाब है,
वो ख्वाब ही नकाब है।
नकाब मे ही राज़ है,
और राज़ ही तो श्राप है।।

इन्सान को इन्सान से तोड़ता ये श्राप है,
तोड़ना फिर जोडना उस नकाब का हुनर ही है,
जो बोलता कुछ और है ,और सोचता भी कुछ और है ।।

सोच के ही अंजाम देता कर्म को अपने है वो,
अंजाम देता कर्म मे छिपे जुर्म को अपने है वो।।

पहचानना जो खुद को है,उसने कभी सीखा नही,
स्वयं को सर्वश्रेष्ठ मान जीता था जो,जीता है जो।
जो पहचान लेता खुद को तू,
तो इस भ्रम मे पड़ता नही की,
तू ही तो सर्वज्ञ है, तू ही तो सर्वश्रेष्ठ है।।

जो पहचान लेता...