कुछ हो तो ऐसा हो।
"नाचीज"
गम की शाम हो तो बुलन्दी पे हो।
बेपेरवाहि परवान चढ़े।
एक नशा हो तो अदब से हो जहन मे।
मुकाम हो तो कुछ ऐसा हो।
वरना गम की शाम, तो नजाने कितने मैखाने समेट लेते है।
सिद्दत हो तो ऐसी, नज़र मे उसके सिवा कुछ और न हो गालिब।
वरना...
गम की शाम हो तो बुलन्दी पे हो।
बेपेरवाहि परवान चढ़े।
एक नशा हो तो अदब से हो जहन मे।
मुकाम हो तो कुछ ऐसा हो।
वरना गम की शाम, तो नजाने कितने मैखाने समेट लेते है।
सिद्दत हो तो ऐसी, नज़र मे उसके सिवा कुछ और न हो गालिब।
वरना...