...

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zindgi
एक लम्हा भी मोहताज है,
कैसी हसरतों का ताज़ है।
ऐ जिंदगी मेरी थोड़ी मोहलते तो बक्श दे....
एक सैलाब सा सवालों के,
बौखलाहटों से लबरेज़ है।
ऐ जिंदगी मेरी थोड़ी मोहलतें तो बक्श दे....
ये कोन सी डगर चली,
कदम जहां से थम गए।
की थम गया है वक्त,
या के सांस ही न थम गई।
जम गई जमी वही,
जमी थी के रेत वो,
ये रेत जैसी जिंदगी,
बस हाथ से फिसल गई,
ऐ जिंदगी मेरी थोड़ी मोहलतें तो बक्श दे....
कहर के खौफ से पहले ही मौत हो गई,
अब जिंदा एक लाश है पड़ी तो पड़ी रहे,
कोन चाहता है यूं कि, मौत भी बर्बाद हो,
कैद कर ले या के खो दू मैं उम्मीद भी बची कूची,
ऐ जिंदगी मेरी थोड़ी मोहलतें तो बक्श दे....