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मुझे आज़ भी है..
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थी जो कल तुझसे
वो मोहब्बत मुझे आज़ भी है,
कल भी किया था तेरे लिए
वो इन्तेज़ार तेरा मुझे आज़ भी है..

कल तलक जो थी आँखों में
वो तस्वीर तेरी मुस्कुराती आज़ भी है,
दस्तकें कैद है सीने में अब भी तेरे आने की
गुजरने वाली हवा तेरी खुश्बू मुझ तक लाती आज़ भी है..

सावन और उसपे बारिश की बरसती वो बूँदें
वो मुलाक़ात तुझसे मेरी याद मुझे आज़ भी है,
कल भी भीगा मैं साथ तेरे था
तुझ संग भीगने की तलब मुझे आज़ भी है..

थे ज़ज्बात सीने में जो तुम्हारे लिए
संजो के रखा है मैंने, उसका एहसास मुझे आज़ भी है,
कल भी जान लुटाता था तुझपे
तेरे हाथों क़त्ल होने का इन्तेज़ार मुझे आज़ भी है..

वो चाँद जो कभी ज़िद थी तुम्हारी
उसे जेब में रख कर घूमने की आदत मुझे आज़ भी है,
कल ज़माने से लड़ा था तेरी ख़ातिर
पूरी क़ायनात से तेरे लिए लड़ने की इजाज़त मुझे आज़ भी है..

तेरी आँखों के वो मदहोश इशारे
उन छलकते जामों का नशा मुझे आज़ भी है,
कल भी डूबा था दरिया में साथ तेरे मैं
साहिल, समंदर की लहरों से इश्क़ मुझे आज़ भी है..

© Sahil Bhardwaj