...

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छोड़ गई फिर तू
कंचन सा दिल
चांदी सी काया
फिर भी मन तेरा
पिघल ना पाया
किसका था साया
जो है खींच रहा तुझे
अपनी ही डोर में
ऐसी भी क्या खता
हमसे हुई जो
तू मुंह मोड़ गई
यूं ही अकेला छोड़ गई
कहते कहते बस तू
इतना ही क्यों कह गई
जा चला जा हो जा
मुझसे अब दूर
राह तुम्हारी देख रही
आतुर सी होकर
कौन करेगी निगरानी अब
मेरी राह मुझे ही अधूरा छोड़ गई।

© anu singh