...

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आखिरी उम्मीद
बहुत ज्यादा बुरे दौर से गुज़रा हूँ
मैं ज़िंदगी में,
बहुत से हादसे और तूफान देखे हैं,
और अपनी उम्र से ज्यादा
बहुत कुछ संभालने की
और बहुत कुछ समझने की कोशिश की है,
वक़्त से पहले खुद
उम्रदराज़ बना लिया,
भूल गए कि बचपना भी कोई चीज़ होती है,
अपनो की खुशियां अपनो के सपने,
अपनो की सेहत स्वस्थता,इस से ज्यादा कभी सोचा ही नही,खुद की भी कोई ज़िंदगी होती
है,ये पता ही नही था,

एक काम किया बस
जिसकी वजह से
दुनिया की नज़र में बुरे बन गए,
पर हम जानते है कि हमने जो भी किया वो वक़्त हालात को देखते हुए किया,कभी
भी स्वार्थ नही सोचा न किसी को इस्तमाल करने की कोशिश की,बस दुनिया से हटकर
कुछ किया तो बहुत बुरे बन गए...

उसके बाद बहुत सारे हादसे तूफान झेले
बहुत ज्यादा कोशिश की सब ठीक हो जाये
रब से दुआएं की पर सब बिगड़ता ही देखा।इन सब के बीच कुछ ऐसा हुआ कि लगा मानो
ज़िंदगी खत्म कर लूं,
पर ऐसा नही कर सकते ज़िमेदारिया थी।
किसी तरह जी रहे थे
तब तुम मिले तुमसे मिल कर मानो
मरे हुए दिल में धड़कन वापस आगयी,
पहली बार लगा मानो खुद से प्यार हो गया हो
तुमसे बात करने की बहुत इच्छा हुई,
बहुत कोशिस की तुमको मना लूं।
पर ऐसा नही हुआ तुम चले गए।
और हम फिर हार गए।
तुमको मनाना मेरी ज़िंदगी की
शायद अख़िरी कोशिश रही,क्
योंकि अब मेरा कुछ भी ठीक
करने का मन नही करता,
ऐसा लगता है मानो मैं कुछ भी कर लूं,
कुछ ठीक नही कर सकता,
जो होना है वो होके रहेगा।
मुझे बस उन दुखों को
सहने के लिए तैयार रहना पड़ेगा।
तुम मेरी आखिरी कोशिश
और आखिरी उम्मीद थे ।





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