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प्रकृति का विनाश इंसानियत का सर्वनाश
देखकर वन में इंसानो को जानवर भी काँपते हैं
पैरो की सुगबुगाहट भाँपते हैं
कितने स्वार्थी हैं हम इंसान विकास के नाम पर जंगल का विनाश कर जमीन मापते हैं
आज छत्तीसगढ़ का जंगल कट रहा
कोयला की खान के लिए
जब पेड़ नष्ट कर लड़ोगे प्रकृति से
खुद की जान के लिए
प्रत्येक जीव की संरचना हुई है इस दुनिया में
भगवान ने दुनिया नहीं बनाई सिर्फ इंसान के लिए
किस विकासवाद की बात करते हैं आप
जिसने हजारों बीमारियों को जन्म दिया
सीमेंट से जमीन को ढंककर
अपने प्रकृति को नग्न किया
उपभोग करें विनाश नहीं
प्रबन्ध करें नियंत्रण नहीं
विचार करें षडयंत्र नहीं
धरती की गोद उजाड़ कर
जमीन से कोयला निकाल कर
बिजलीघर का निर्माण कर ज़हरीली धुओं से वातावरण को दूषित कर
विकल्प ढूंढिए संकल्प कर नाश रोकिए
आज कोयला संकट है
तो जमीन की छाती चिर रहे हो
कल जल का संकट होगा तो क्या करोगे
कल खाद्य संकट उतपन्न होगा तो क्या मरोगे
मोल है इस सृष्टि में हर जान के लिए
नहीं बनी है धरती सिर्फ इंसान के लिए
दुसरो को देकर खाएं ये प्रकृति है
दूसरों का छिनकर खाएं ये विकृति है
धरती माँ को प्रणाम कर खाएं
ये भारतीय संस्कृति है
कुरान को लड़ा रहे गीता से
गीता को लड़ा रहे कुरान से
धर्म मजहब के नाम पे नेता लड़ा रहे
इंसानियत को इंसान से
मोल है इस सृष्टि में हर जान के लिए
नहीं बनी है धरती सिर्फ इंसान के लिए ।
© 𝓴𝓾𝓵𝓭𝓮𝓮𝓹 𝓡𝓪𝓽𝓱𝓸𝓻𝓮
पैरो की सुगबुगाहट भाँपते हैं
कितने स्वार्थी हैं हम इंसान विकास के नाम पर जंगल का विनाश कर जमीन मापते हैं
आज छत्तीसगढ़ का जंगल कट रहा
कोयला की खान के लिए
जब पेड़ नष्ट कर लड़ोगे प्रकृति से
खुद की जान के लिए
प्रत्येक जीव की संरचना हुई है इस दुनिया में
भगवान ने दुनिया नहीं बनाई सिर्फ इंसान के लिए
किस विकासवाद की बात करते हैं आप
जिसने हजारों बीमारियों को जन्म दिया
सीमेंट से जमीन को ढंककर
अपने प्रकृति को नग्न किया
उपभोग करें विनाश नहीं
प्रबन्ध करें नियंत्रण नहीं
विचार करें षडयंत्र नहीं
धरती की गोद उजाड़ कर
जमीन से कोयला निकाल कर
बिजलीघर का निर्माण कर ज़हरीली धुओं से वातावरण को दूषित कर
विकल्प ढूंढिए संकल्प कर नाश रोकिए
आज कोयला संकट है
तो जमीन की छाती चिर रहे हो
कल जल का संकट होगा तो क्या करोगे
कल खाद्य संकट उतपन्न होगा तो क्या मरोगे
मोल है इस सृष्टि में हर जान के लिए
नहीं बनी है धरती सिर्फ इंसान के लिए
दुसरो को देकर खाएं ये प्रकृति है
दूसरों का छिनकर खाएं ये विकृति है
धरती माँ को प्रणाम कर खाएं
ये भारतीय संस्कृति है
कुरान को लड़ा रहे गीता से
गीता को लड़ा रहे कुरान से
धर्म मजहब के नाम पे नेता लड़ा रहे
इंसानियत को इंसान से
मोल है इस सृष्टि में हर जान के लिए
नहीं बनी है धरती सिर्फ इंसान के लिए ।
© 𝓴𝓾𝓵𝓭𝓮𝓮𝓹 𝓡𝓪𝓽𝓱𝓸𝓻𝓮
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