...

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आख़री सफर

ना सुना ना देखा ना ही कभी सोचा था किसीने,
नुमाइशें लाशो की लगेंगी, कभी गंगा के किनारे भी !

ज़िन्दगी देने वाले डॉक्टरों को कभी सोचा ना था किसीने,
जान अपनी ही गवां देंगे, लड़ते लड़ते इस शैतान कोरोना से वो भी !

लाशों के ढेर पर भी सियासत कर रहे है कुछ लोग...