...

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वजह तो बताए....
मान लिया की वो नाराज़ है हमसे मगर कोई वज़ह तो बताए !!
जाके क्यों रोता है गैरों के पास नाराज़गी भी मुझी से जताए !!

हो सकता है मुझमें हज़ार ऐब हों, दिल में अथाह फरेब हो
अगर वो मेरा सच्चा साथी है तो फिर मुझे आईना दिखलाए !!

रिश्तों के दरमियाँ जो दूरियां है वो नाराज़गी करने से मिटेगी
हमदोनों में अगर गलत मैं हूँ तो फिर वो तो सही बतलाए !!

माना सहृदय समर्पण नहीं था मुझमें पर वो तो समझाता मुझे
एक साथी के स्नेह और सौहार्दता के सिंद्धान्तों को सिखलाए !!

तेरा नाराज़ हो जाना हर मतभेदों का हल नहीं हो सकता ना
गर साथी की तरह सरलता और सौम्यता का भाव समझाए !!

चलो माना मेरी ही गलती है पर तुमने कभी ऐसा सोचा है कि
नाराज़ है वो मुझसे लेकिन कोशिश में हूं कि अब तो मान जाए !!

व्योम सा विस्तृत होता है ये मन इनमें द्वंद होते रहते है प्रतिपल
तमन्ना है व्यथा भी मुझी से कहे और अपनत्व भी मुझी से जताए !!

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© कुन्दन प्रीत