जिन्दगी में बढ़ती नफरत...
#जून
चार जून की बात है
उसमें भी कुछ घात है
कौन बनेगा समय का साहु,
ये इत्तेफाक की बात है,
ज़िन्दगी की खामोशीयों में,
इंसान ख़ामोश है इंसानियत बेचैन है,
कौन करता है बात यहां हर सख्श ख़ामोश है,
गर्मी मौसम में हैं जो ल लोग रहे हैं,
कोई शांति नहीं चाहता सब उबल रहे हैं।
© राज
चार जून की बात है
उसमें भी कुछ घात है
कौन बनेगा समय का साहु,
ये इत्तेफाक की बात है,
ज़िन्दगी की खामोशीयों में,
इंसान ख़ामोश है इंसानियत बेचैन है,
कौन करता है बात यहां हर सख्श ख़ामोश है,
गर्मी मौसम में हैं जो ल लोग रहे हैं,
कोई शांति नहीं चाहता सब उबल रहे हैं।
© राज