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हाँ तुम सच्ची,में झूठा
माना में झूठा हूँ,तुम सच्ची हो ।पर याद करो वो पल जब तुम उन रातो मे मेरी बाँहो मे सिर रखकर सोया करती थी,प्रेम के नूतन रंग भरा करती थी।जीने ओर मरने की कसमे खाया करती थी,ओर अपने आप मे ही कुछ प्रेम के गीत गुनगनाया करती, मेरे होंठो को अपने नर्म होठो से सहलाया करती थी...माना तुम सच्ची हो,मे झूठा हूँ।पर याद करो वो पल कब तुम मुझे कसमो के बंधन मे बाँध दिया करती थी ओर जिदंगी भर साथ निभाने का सच्चा वादा क्या करती थी,अपनी प्यारी बातो ओर भोली अदाओ से इस दिल मे प्रेम का वार क्या करती थी...माना मे झूठा हूँ,तुम सच्ची हो।पर याद करो वो पल जब तुम मेरे प्यार की विश्वसनीयता पर सवाल उठाया करती थी मेरे सोशल एंकाउट,मेरी काँल डिटेल को तुम खंगाला करती थी,अपने पन‌ का अहसास कराया करती थी।ओर गर मे होंठो से लगा लेता जाम तो तुम मुझसे नराज हो जाया करती थी उस शाम।हाँ तुम मोमो की तरह नर्म थी ओर मे तिखी चटनी की तरह तिखा ओर हमारा प्यार सूप की तरह बेहद ही हाँट,हाँ फिर भी तुम सच्ची हो,ओर मे झूठा...वो राते भी छोटी थी,वो दिन भी छोटे लगते थे,तुम बिन हम ना रह पाते हे,ओर हम बिन तुम ना रह पाती थी,हर बात मुजझे क्या करती थी,तुम अपनी ही दुनीया मे मस्त दोस्तो से बेखबर रहा करती थी।खुले आसमान मे तारे गिना करती थी,छत के एक कोने मे बेठ कर तुम मेरी शाम को नया जाम दिया करती थी। हर सुख दुख मे साथ दिया करती थी ..हा तुम सच्ची हो,ओर मे झूठा..पर तुम अब उन प्यार के वादो को भी भूल गयी,उन प्यार की रसमो को भी भूल गयी,उन कसमो को भी भूल गयी ओर प्यार की वफाओ से किनारा कर गयी,तुमने एक पवित्र प्यार को चित्त विचित्त कर गयी,ओर अब उन नगमो को एक इत्तफाक समझने लगी...हाँ तुम सच्ची हो,मे झूठा...माना तुम आज अपने महबूब की बाहो मे केद ओर अब प्यार मे केदी हो पर याद करो वो जब तुम स्वतंत्र थी,ओर आसमान से भी ऊँचा उडा करती थी,अपनी हर बात मे मनमानी किया करती,ओर प्यार की एक स्वतंत्र कहानी लिखा करती थी,पर वक्त बदला हे तुम आज प्रेम के बंधन मे घिरी हो ,किसी को खुद से भी ज्यादा प्रिय हो तुम अब एक पवित्र बंधन मे हो,पर तुम आज भी एक प्यारी सी लडकी हो,किसी को खुद से भी ज्यादा प्रिय हो....हाँ तुम सच्ची हो ,ओर मे झूठ........
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