...

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तुम्हें क्या? लिखूं!
तुम्हें क्या? लिखूं!
चांद लिखूं या तारा
नभ में छाने वाला
सुरज सा उजियारा
तुम्हें क्या लिखूं,,,,,,

लिखूं तुम्हें कैसे
सागर सा खारा
डर लगता है
कहीं भड़क ना जाये तु यारा
तुम्हें क्या लिखूं,,,,,,

तुम्हें लिखूं
बिन बादल बरसात
या तुम्हें लिखूं
गहरी समुद्र सी याद
तुम्हें क्या लिखूं,,,,,,

तुम्हें लिखूं सुरमा
या दिल कि धडकन
तुम्हें लिखूं क्या
मेरे हर दर्द का मरहम
तुम्हें क्या लिखूं,,,,,,

तुम्हें लिखूं क्या
कोयल की मीठी आवाज
तुम्हें लिखूं मैं
मरुस्थल का व्यास
तुम्हें क्या लिखूं,,,,,,

अब और क्या लिखूं
तुमसे है श्रीष्टी
अगर तुम हो
तो मेरे पास है और दो दृष्टि
तुम्हें क्या लिखूं,,,,,,
© Sandeep Kumar