...

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खोएं हुए ऊस शख्स को ढूंढता हूँ..
बिखरी हुई जिंदगी के टुकड़ों मैं अपने अक्ष को ढूंढता हूँ...
काफी खुश रहां करता था , मैं खोएं हुए ऊस शख्स को ढूंढता हूँ..

काफी शांत सा था , उसे भागना दौडना तो भाता हीं नहीं था...
वो खीले हुए फुल जैसा था , उसे मुरझाना तो आता हीं नहीं था...

जहां होता मस्त होता , कभी आगे कि वो सोचता कहाँ था...
परिक्षा देने चला तो गया है , पर जवाब देना उसे आता कहाँ था...

वो बोलता बडा ज्यादा था , चुप रहना उसे बहोत खलेगा..
ठंडा सा है बोल नहीं पाएगा , अंदर ही अंदर बहोत जलेगा...

कीसी को कुछ मालूम भी नहीं पडेगा , वो तो हसता रहेगा...
खुद ही खुद से परेशान , वो किसी से फरियाद भी क्या करेगा...

बाते उसकीं बचकानी होती हैं , कीसीको समजा नहीं पाएगा...
समजदारी समज नहीं आती उसे , वो हार मान जाएगा...

yuvrajsinh jadeja