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प्रेम मस्ती की हाला
प्रेम बहुत ही मादकयारो यह मस्ती की हाला है।बार बार पीना चाहे जो एक बार पीता इसका प्याला है।
प्रेमअगनकी तपन बहुत है बार बार जलता है मन,
चखकर इसका स्वाद निराला मन हो जाता मतवाला है।
प्रेम ही स्रष्टि प्रेम ही वृष्टि प्रेम की दृष्टि
व्यापक
व्यापे प्रेम चराचर मे इसका ही बोलबाला है।
होती नही खुदाई यह अगर प्रेम नही होता।
लेती लपट में सबको यह ऐसी ही यह
ज्वाला है।
रहती है शांति वहां जहां प्रेम है होता,
मिलजुलकर सबको रहने का देता प्रेम
हवाला है।
डूबता है जो प्रेम का सागर मिलती उसको मुक्ति,
प्रेम-म॔त्र का जाप यहां हर कोई करने
वाला है।
अरूण 'अकेला'


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