42 views
ग़ज़ल
बशर तू शौक़ पूरे कर रहा है
मगर पापों का लोटा भर रहा है
अमर बस रूह होती है सभी की
अज़ल से जिस्म ही नश्वर रहा है
नहीं है ज़िंदगी हासिल सभी को
कोई ज़िंदा भी होकर मर रहा है
तुम्हें जो लग रहा है आज टूटा
कभी वो शख़्स भी पत्थर रहा है
नहीं झुकने दिया जिसने कोई सर
उसी का सर सदा ऊपर रहा है
गिराया जा रहा है आज जिसको
शजर वो पंछियों का घर रहा है
नहीं छपती ख़बर अख़बार में भी
वतन का मीडिया भी डर रहा है
न कर ज़ाया यूँ अपनी ज़िंदगी को
'सफ़र' तू सोचले क्या कर रहा है
© -प्रेरित 'सफ़र'
मगर पापों का लोटा भर रहा है
अमर बस रूह होती है सभी की
अज़ल से जिस्म ही नश्वर रहा है
नहीं है ज़िंदगी हासिल सभी को
कोई ज़िंदा भी होकर मर रहा है
तुम्हें जो लग रहा है आज टूटा
कभी वो शख़्स भी पत्थर रहा है
नहीं झुकने दिया जिसने कोई सर
उसी का सर सदा ऊपर रहा है
गिराया जा रहा है आज जिसको
शजर वो पंछियों का घर रहा है
नहीं छपती ख़बर अख़बार में भी
वतन का मीडिया भी डर रहा है
न कर ज़ाया यूँ अपनी ज़िंदगी को
'सफ़र' तू सोचले क्या कर रहा है
© -प्रेरित 'सफ़र'
Related Stories
69 Likes
30
Comments
69 Likes
30
Comments