...

10 views

परों को खोल, सुए आसमान कर मुझको
परों को खोल सुए आसमान कर मुझको
कभी तो खुद से रिहा मेरी जान कर मुझको

सियाह रात में तू मुझमें धूप जैसा खिल
शदीद धूप में तू सायबान कर मुझको

यकीन बनके किसी रोज तू उतर मुझ में
फिर अपनी जात से तू बदगुमान कर मुझको

मैं गर्म रातों में तुझमें महक महक उट्ठूं
तू सर्द रातों में सो जाए तान कर मुझको

मैं चाहता हूं तिजोरी से तू निकाल मुझे
और अपने दोनों ही हाथों से दान कर मुझको

तेरा खयाल भी आए तो मैं महक उट्ठूं
जरा सा छूके कभी ज़ाफरान कर मुझको

फरीद क़मर

‎پروں ‏کو ‏کھول، ‏سوئے ‏آسمان ‏کر ‏مُجھ ‏کو
‏کبھی ‏تو ‏خود ‏سے ‏رہا ‏میری ‏جان ‏کر ‏مُجھ ‏کو۔

‏سیاہ ‏رات ‏میں ‏تو ‏مُجھ ‏میں ‏دُھوپ ‏جیسا ‏کھل
‏شدید ‏دُھوپ ‏میں ‏تو ‏سائبان ‏کر ‏مُجھ ‏کو۔

‏یقین ‏بن ‏کے ‏کسی ‏روز ‏تو ‏اُتر ‏مُجھ ‏میں
‏پھر ‏اپنی ‏ذات ‏سے ‏تو ‏بد ‏گُمان ‏کر ‏مُجھ ‏کو۔

میں ‏گرم ‏راتوں ‏میں ‏تُجھ ‏میں ‏مہک ‏مہک ‏اٹھوں
‏تو ‏سرد ‏راتوں ‏میں ‏سو ‏جائے ‏تان ‏کر ‏مُجھ ‏کو۔

‏تو ‏اپنے ‏دل ‏کی ‏تجوری ‏سے ‏اب ‏نکال ‏مجھے
‏اور ‏اپنے ‏دونوں ‏ہی ‏ہاتھوں ‏سے ‏دان ‏کر ‏مُجھ ‏کو۔
‏ترا ‏خیال ‏بھی ‏آئے ‏تو ‏میں ‏مہک ‏اٹھوں
‏ذرا ‏سا ‏چھُو ‏کے ‏کبھی ‏زعفران ‏کر ‏مُجھ ‏کو۔

‏فرید ‏قمر
© Fareed 'Qamar'