...

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कितने पास कितने दूर
इससे बढ़कर और
अजनबियत क्या हो सकती है,
कि मिलते हैं हम अपनों से भी
मुस्कुराते हुये, सौ ग़म छुपाते हुये।

इस क़दर दूर हैं किसी से हम
फिर भी क़ुर्बतों का ग़ुमान करते हैं
हर बात का ज़िक्र, सामाजिक फ़िक्र
किस्से सुनते सुनाते हैं कुछ छुपाते हुये।
--Nivedita