...

5 views

तू आगे बढ़ कुछ नायाब कर
**तू आगे बढ़ कुछ नायाब कर**

तू आगे बढ़ ,
अपने दम पर कुछ नायाब कर
करके हौसलो को बुलंद
एक नयी उड़ान भर,
तोड़ कर जंजीरो को,
पुराने रूढ़ीबादी खयालात को,
जरा अपनी सोच बदल कर देख,
ये खुला आसमान बांहे फैलाये
तेरा इंतजार कर रहा है ,
तू भी जरा अपने पंख खोल कर देख ले ,
खुद ही भर ले अपनी उड़ान
कितना सुकुन मिलता है
जरा अपने भीतर के बंद
खिड़की और दरवाजे को
खोल कर देख ले,
झाक ले अपने अंदर ,
क्या नहीं है तुझ में ?
क्यों डर रहा है तू ?
हाँ ! पता है जरा मुश्किल होता है ,
महत्वाकांक्षा की सीढ़ियाँ चढ़ना,
पर नामुमकिन तो नहीं ;
हो सकता है तू गिर भी जाए ,
पर जो गिर कर उठता है ,
आगे भी वही तो बढ़ता है ,
सुरज भी ढलता और फिर उगता है,
सारी दुनिया को अपने होने का एहसास कराता है ,
हर अमावस्या में चंदा भी तो खो जाता है ,
फिर पुर्णिमा आते आते पुरे
जग को रोशन कर जाता है ,
तू भी आगे बढ़,
अपने दम पर कुछ नायाब कर,
करके हौसलों को बुलंद
एक नयी उड़ान भर ।

दिल की कलम
© All Rights Reserve