...

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क्या तुझे भी मेरी याद आती होंगी...
याद करके वो सारे पल मैं यह सोच रहा था मन ही मन.....
क्या वो भी उन पलों पे मुस्कुराती होंगी....
क्या उसे भी मेरी याद आती होगी?...
रोज़ पढ़ती होंगी वो भी मैसेजस हमारे बार बार....
ना जाने खुद को कोसा होगा उसने भी कितनी बार.....
हमारी फोटोस बार बार देख के आंखे तो उसकी भी भर आती होती...
क्या उसे भी मेरी याद आती होंगी?...
क्या उनसे भी लिखा होगा एक लम्बा सा मैसेज मुझे...
फिर डिलीट कर दिआ होगा को डेस्पेरेट समझ के....
क्या वो भी मेरे बंद पड़े नम्बर पे युही कॉल लगाती होंगी.....
क्या उसे भी रोज़ रोज़, हर रोज़, हर मंज़र, हर लम्हा मेरी याद आती होंगी?...
आज बीत गया है एक अरसा....
मैं सुनने को तेरी आवाज हु तरसा....
आज भी आस मेरी जगी हुई है...
ढूंढ़ती हुई यह निगाहेँ मेरी उन दरवाज़ों से ही लगी हुई है.....
सोचता हु अकसर तू बस अभी दौड़ कर मेरे पास आती ही होंगी.....
आखिर तुझे भी तो मेरी याद आती होगी.....
फेर लिया करती होंगी ना तू हाथ अपने बालो पर....
फिर रो दिआ करती होंगी खुद को अधूरा समझकर .....
तू तो जान है मेरी बाबू फिर क्यों तू मुझसे दूर है.....
आखिर ऐसी भी क्या बात है के तू इतना मजबूर है.....
यादें हमारी सारी तुझे भी तो सताती होंगी.....
जो मैं सोच रहा हु अभी यह ख़्यालात तुझे भी तो आ जाती होंगी......
यह मैं सोच रहा हु या यही है सच्चाई.......
क्या सच मे कभी तुझे मेरी याद आयी.....????
क्या तू भी मुझे इतने ही दिलो जान से चाहती होंगी....
क्या अब भी तुझे मेरी याद आती होंगी???....