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दिल-ए-उम्मीद तोड़ा है किसी ने,
सहारा दे के छोड़ा है किसी ने
न मंज़िल है न मंज़िल का निशाँ है,
कहाँ पे ला के छोड़ा है किसी ने


मैं इन शीशा-गरों से पूछता हूँ,
कि टूटा दिल भी जोड़ा है किसी ने
क़फ़स की तीलियाँ रंगीन क्यूँ हैं,
यहाँ पे सर को फोड़ा है किसी ने


~ राग़िब मोरादाबादी
© destiny_16.17